शत्रुहंता योग शत्रुओं का नाश करता है शत्रुहंता योग, भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में था ये योग शत्रुहंता योग ज्योतिष शास्त्र के सबसे प्रमुख योगों में से एक माना जाता है. शत्रुहंता योग जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में होता है उसका शत्रु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते हैं. जन्म कुंडली में कैसे बनता है ये योग, आइए जानते हैं. व्यक्ति जब प्रगति के पथ पर बढ़ता है तो स्वभाविक रूप से कुछ ऐसे लोगों भी होते हैं जो शत्रुता का भाव रखने लगते हैं. व्यक्ति के जीवन में दो प्रकार के शत्रु होते हैं. पहला दिखाई देने वाले शत्रु और दूसरे शत्रु वे जो दिखाई नहीं देते हैं. आज के दौर में जहां हर चीज में प्रतिस्पर्धा है. ऐसे शत्रुओं का होना स्वभाविक है. शत्रु अहित न कर सकें इसके लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ नियम बताए गए हैं. वहीं व्यक्ति की जन्म कुंडली में शत्रुओं को पराजित करने का योग भी होता है. ज्योतिष शास्त्र में इस योग को शत्रुहंता योग के नाम से जाना जाता है. जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शत्रुहंता योग होता है, वह सफल होता है. उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. जॉब और बिजनेस में भी ऐसे लोग कीर्तिमान रचते हैं. इस बात वर्णन सूरदासजी एक दोहे में मिलता है- नन्दजू मेरे मन आनन्द भयो, मैं सुनि मथुराते आयो, लगन सोधि ज्योतिष को गिनि करि, चाहत तुम्हहि सुनायो । सम्बत्सर ‘ईश्वर’को भादों, नाम जु कृष्ण धरयो है, रोहिणि, बुध, आठै अँधियारी ‘हर्षन’जो परयो है। बृष है लग्न, उच्च के ‘उडुपति’, तन को अति सुखकारी, दल चतुरंग चलै सँग इनके, हैं रसिक बिहारी । चोथी रासि सिंह के दिनमनि, महिमण्डल को जीतैं, करिहैं नाम कंस मातुल को, निहचै कछु दिन बीतै । पंचम बुध कन्या के सोभित, पुत्र बढैंगे सोई , छठएं सुक्र तुला के सनिुत, सत्रु बचै नहिं कोई । नीचझ्रऊँच जुवती बहु भोगैं, सप्तम राहु परयो है, केतु ‘मूरति’में स्याम बरन, चोरी में चित्त धरयो है। भाग्यझ्रभवन में मकर महीसुत, अति ऐश्वर्य बढैगो, द्विज, गुरुजन को भक्त होइकै, कामिनिझ्रचित्त हरैगो । सूरदास के इस दोहे में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय ग्रह, नक्षत्र और तिथि का जिक्र मिलता है. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की जन्म के समय ग्रहों के गोचर का वर्णन करते हुए जन्मकुंडली में बनने वाले योगों के बारे में भी जानकारी देते हैं. शत्रुहंता योग ऐसे बनता है किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शत्रुहंता योग का निर्माण जन्म कुंडली के छठवें भाग में बनता है. भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में छठे भाव में शुक्र और शनि के साथ शत्रुहंता योग बना था. उनके अनेक शत्रु थे लेकिन इस योग के निर्माण से शत्रु उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाए. छठवें भाव में राहु हो तो शत्रु बुरी तरह परास्त होता है ज्योतिष सलाहकार एवं वास्तु एक्सपर्ट रविन्द्र पारीक
very nice article by Astro Ravi ji
बहुत ही जबरदस्त उदहारण सहित बताया