सम्पूर्ण पितृ आदि दोषो का संक्षिप्त ओर उपायो सहित विवेचन

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Yatin S Upadhyay 29th Jan 2020

*दोष शापित पितृदोष-* *-दोष शापित पितृदोष, मातृदोष* *भातृदोष,मातुलदोष,प्रेतदोष*सम्पूर्ण विवेचन जानिए मेरे साथ *अन्य शाप व निवारण* जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है.यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है | सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है..? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है। तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है। *बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं।*1-जिनमें पितृ दोष, 2-मातृ दोष, 3-भ्रातृ दोष, 4-मातुल दोष, 5-प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है। इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है | पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :- *जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि "सूर्य-राहु" या "सूर्य-शनि" एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है |* इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है | *सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है |* किसी जातक की *यतिन एस उपाध्याय के अनुसार कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है |* *★जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है।* *🔺उपाय –* यदि आपकी कुण्डली में उपरोक्त पितृ दोष में से कोई एक बन रहा है तब आपको *जिस रविवार को संक्रांति पड़ रही है या अमावस्या पड़ रही है उस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए |* उन्हें यथा संभव दक्षिणा भी देनी चाहिए | ★पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव में कमी आती है | *जन्म कुंडली में चंद्र-राहु, चंद्र-केतु, चंद्र-बुध, चंद्र-शनि, आदि की युति से मातृ दोष होता है | यह दोष भी पितृ दोष की ही भाँति है.इन योगों में *"चंद्र-राहु, और "सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग"* कहते हैं | *★यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह "जड़त्व योग" बनता है |* ★इन योगों के प्रभावस्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं | ★वैसे *चंद्र की युति राहु के साथ* कभी भी शुभ नही मानी जाती है | इस युति के प्रभाव से °°माता या पत्नी को कष्ट होता है, °°मानसिक तनाव रहता है, °°आर्थिक परेशानियाँ, °°गुप्त रोग, °°भाई-बांधवों से वैर-विरोध, °°परिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के ...फल मिल सकते हैं | ★जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और ★दशमेश/कर्मेशका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रही हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है | ★यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा ★पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण ★संतान कष्ट या ★संतान से सुख में कमी रहती है | ★बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और ★दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृ दोष की कुंडली बनती है और इस दोष के कारण ★धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है | इन योगों के अतिरिक्त कुंडली में कई योग ऎसे भी बन जाते हैं जो कई प्रकार से कष्ट पहुंचाने का काम करते हैं | ★जैसे पंचमेश राहु के साथ यदि त्रिक भावों (6, 8, 12) में स्थित है और पंचम भाव शनि या कोई अन्य क्रूर ग्रह भी है तब ★संतान सुख में कमी हो सकती है । ★शनि तथा राहु के साथ अन्य शुभ ग्रहों के मिलने से कई तरह के अशुभ योग बनते हैं जो पितृ दोष की ही तरह बुरे फल प्रदान करते हैं। *पितृ दोष की शांति के विशेष उपाय –* यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तब वह सरल उपायों के द्वारा भी पितृ दोष के प्रभाव को कम कर सकता है | *🔅यह उपाय निम्नलिखित हैं :-* ★यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब उस व्यक्ति को अपने घर की ★दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर उन्हें सम्मानित करना चाहिए | ★पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, ★अपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्र और दान-दक्षिणा आदि देनी चाहिए | ★नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए | ★जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए | ★भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए | ★धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए | ★प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और *“ऊँ पितृभ्य: नम:”* मंत्र का जाप करें ★उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है. ★प्रत्येक संक्रांति, ★अमावस्या और ★रविवार के दिन ..सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें | ★प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए. ★पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए | ★त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ ★पंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठ, ★पूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए | ★इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है । पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त ★श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए. कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए | इससे शुभ फल मिलते हैं | ★श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए | ★सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए. ★पीपल के वृक्ष पर मध्यान्ह में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएँ | ★संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें | ★ब्राह्मण को भोजन कराएँ. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है. ★सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें | ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है | ★प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है | ★कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या ★उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है | ★ब्राह्मणों को गोदान, कुंए खुदवाना, पीपल तथा बरगद के पेड़ लगवाना, ★विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमदभागवत गीता का पाठ करना, ★पितरों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला, आदि बनवाने से भी लाभ मिलता है। 🔅पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय – 🔅पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है | इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :- ★1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए ★नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है। *💥2. मातृ दोष –* ★यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर ★शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और ★गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब ★मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है। *🎯मातृ दोष के शांति उपाय –* यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए ★गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. ★इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा ★दशमांश तर्पण करना चाहिए और ★ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है। ★मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है। *💥3. भ्रातृ दोष –* तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है। *🔅भ्रातृ दोष के शांति उपाय –* भ्रातृ दोष की शांति के लिए ★श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और ★सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा ★विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए। *💥4. सर्प दोष –* ★यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या ★मंगल की राशि में राहु हो तब ★सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या.. ★संतान हानि होती है। *🔅सर्प दोष के शांति उपाय –* ★सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. ★इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए, उन्हें वस्त्र, गाय दान, भूमि दान, तिल, चांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें। https://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 *💥5. ब्राह्मण श्राप या दोष –* ★किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरु, मंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ★ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधा, सुख में कमी या संतान हानि होती है। *💥ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय –* ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी ★मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. ★व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. ★बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. ★सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है। *💥 मातुल श्राप –* यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है *मातुल श्राप के शांति उपाय –* ★मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुल, तालाब, नल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है। *7. प्रेत श्राप –* ★किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है। ★यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या ... ★अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं। https://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 *प्रेत श्राप के शांति उपाय –* ★प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है। ★गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। https://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 *यतिन एस उपाध्याय* https://www.futurestudyonline.com/astro-details/89


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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