श्री गणेश चतुर्थी एवं श्रीगणेश महोत्सव 22 अगस्त से 1 सितंबर 2020 विशेष 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते है। हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है। लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था। अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की। गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ। वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं। गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं। पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।
(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।
(4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे।
(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे।
(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)। (7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे। (10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।
(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।
(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं। गणेश चतुर्थी पूजन 〰〰🌼〰〰
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 21 अगस्त को 23:01 बजे से चतुर्थी तिथि समाप्त 22 अगस्त 2020 को 19:55 बजे पूजन मुहूर्त 〰〰〰
गणपति स्वयं ही मुहूर्त है। सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिनभर कभी भी स्थापन कर सकते है। सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है। मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है। गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यंतशुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार अभिजित मुहूर्त सुबह लगभग 11.54 से दोपहर 12.45 तक रहेगा।इस समय के बीच श्रीगणेश पूजा आरम्भ कर देनी आवश्यक है। चन्द्रमा को नहीं देखने का समय 09:01 से 21:20 तक22-08-2020 पूजा की सामग्री 〰〰〰〰〰 गणेश जी की पूजा करने के लिए चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली, मोली, लाल चन्दन, जनेऊ गंगाजल, सिन्दूर चांदी का वर्क लाल फूल या माला इत्र मोदक या लडडू धानी सुपारी लौंग, इलायची नारियल फल दूर्वा, दूब पंचमेवा घी का दीपक धूप, अगरबत्ती और कपूर की आवस्यकता होती है। सामान्य पूजा विधि 〰〰〰〰〰〰
सकाम पूजा के लिये स्थापना से पहले संकल्प भी अत्यंत जरूरी है। यहाँ हम संक्षिप्त विधि बता रहे है संकल्प विधि 〰〰〰〰
हाथ में पान के पत्ते पर पुष्प, चावल और सिक्का रखकर सभी भगवान को याद करें। अपना नाम, पिता का नाम, पता और गोत्र आदि बोलकर गणपति भगवान को घर पर पधारने का निवेदन करें और उनका सेवाभाव से स्वागत सत्कार करने का संकल्प लें। भगवान गणेश की पूजा करने लिए सबसे पहले सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने। क्योकि गणेश जी को लाल रंग प्रिय है। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं। ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें। गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं। लाल चन्दन का टीका लगाएं। अक्षत (चावल) लगाएं। मौली और जनेऊ अर्पित करें। लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें। इत्र अर्पित करें। दूर्वा अर्पित करें। नारियल चढ़ाएं। पंचमेवा चढ़ाएं। फल अर्पित करें। मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं। लौंग इलायची अर्पित करें। दीपक, अगरबत्ती, धूप आदि जलाएं इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश आदि स्तोत्रों का पाठ करे। यह मंत्र उच्चारित करें 〰〰〰〰〰〰
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।। कपूर जलाकर आरती करें 〰〰〰〰〰〰〰〰
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। जय गणेश जय गणेश… एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी। माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी।। जय गणेश जय गणेश… अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।। जय गणेश जय गणेश… हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा।। जय गणेश जय गणेश… दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी।। जय गणेश जय गणेश… चतुर्थी,चंद्रदर्शन और कलंक पौराणिक मान्यता 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
22 तारीख को यानी गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी चंद्र दर्शन न करें वर्ना आपके उपर बड़ा कलंक लग सकता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा का दृष्टांत है। एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है। भाद्रपद (भादव ) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चन्द्रमा के दर्शन हो जाने से कलंक लगता है। अर्थात् अपकीर्ति होती है। भगवान् श्रीकृष्ण को सत्राजित् ने स्यमन्तक मणि की चोरी लगायी थी। स्वयं रुक्मिणीपति ने इसे “मिथ्याभिशाप”-भागवत-१०/५६/३१, कहकर मिथ्या कलंक का ही संकेत दिया है। और देवर्षि नारद भी कहते हैं कि – आपने भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के चन्द्रमा का दर्शन किया था जिसके फलस्वरूप आपको व्यर्थ ही कलंक लगा – त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम् । कृतं येनेह भगवन् वृथा शापमवाप्तवान् ।। –भागवतकी श्रीधरी पर वंशीधरी टीका,स्कन्दपुराण का श्लोक । तात्पर्य यह कि भादंव मास की शुक्लचतुर्थी के चन्द्रदर्शन से लगे कलंक का सत्यता से सम्बन्ध हो ही –ऐसा कोई नियम नहीं । किन्तु इसका दर्शन त्याज्य है । तभी तो पूज्यपाद गोस्वामी जी लिखते हैं — “तजउ चउथि के चंद नाई”-मानस. सुन्दरकाण्ड,३८/६, स्कन्दमहापुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्लपक्ष के चन्द्र का दर्शन मैंने गोखुर के जल में किया जिसका परिणाम मुझे मणि की चोरी का कलंक लगा। मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्याम् चन्द्रदर्शनम् । गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता ।। यदि भादव के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो कलंक से कैसे छूटें ?
1👉 यदि उसके पहले द्वितीया का चंद्र्मा आपने देख लिया है तो चतुर्थी का चन्द्र आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।
2👉 या भागवत की स्यमन्तक मणि की कथा सुन लीजिए ।
3👉 अथवा निम्नलिखित मन्त्र का 21 बार जप करलें – सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।
4👉 यदि आप इन उपायों में कोई भी नहीं कर सकते हैं तो एक सरल उपाय बता रहा हूँ उसे सब लोग कर सकते हैं । एक लड्डू किसी भी पड़ोसी के घर पर फेंक दे ।(नोट अपने विवेक से करें) चंद्र दर्शन से बचने का समय- 09:01 से 21:20 तक (22 अगस्त2020)
राशि के अनुसार करें गणेश जी का पूजन 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
गणेशचतुर्थी के दिन सभी लोग को अपने सामर्थ्य एवं श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करते है। फिर भी राशि स्वामी के अनुसार यदि विशेष पूजन किया जाए तो विशेष लाभ भी प्राप्त होगा।
👉 यदि आपकी राशि मेष एवं बृश्चिक हो तो आप अपने राशि स्वामी का ध्यान करते हुए लड्डु का विशेष भोग लगावें आपके सामथ्र्य का विकास हो सकता है।
👉 आपकी राशि बृष एवं तुला है तो आप भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग विशेष रूप से लगावें आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है।
👉 मिथुन एवं कन्या राशि वालो को गणेश जी को पान अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे आपको विद्या एवं बुद्धि की प्राप्ति होगी।
👉 धनु एवं मीन राशि वालों को फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सुख, सुविधा एवं आनन्द की प्राप्ति हो सके।
👉 यदि आपकी राशि मकर एवं कुंभ है तो आप सुखे मेवे का भोग लगाये। जिससे आप अपने कर्म के क्षेत्र में तरक्की कर सकें।
👉 सिंह राशि वालों को केले का विशेष भोग लगाना चाहिए जिससे जीवन में तीव्र गति से आगे बढ़ सकें।
👉यदि आपकी राशि कर्क है तो आप खील एवं धान के लावा और बताशे का भोग लगाए जिससे आपका जीवन सुख-शांति से भरपूर हो गणेश महोत्सव की तिथियां 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
1- गणेश चतुर्थी व्रत- 22 अगस्त शनिवार 2- ऋषि पंचमी 23 अगस्त - रविवार 3- मोरछठ-चम्पा सूर्य, बलदेव षष्ठी 24 अगस्त - सोमवार 4- संतान सप्तमी 24 अगस्त - सोमवार 5- राधाष्टमी -25 अगस्त - मंगलवार 6- श्रीमहालक्ष्मी व्रत आरम्भ, ऋषि दधीचि जन्म 26 अगस्त - बुधवार 7- अदुख नवमी (उदासीन) 27 अगस्त - गुरुवार 8- तेजा दशमी, रामदेव जयंती 28 अगस्त - शुक्रवार 9- पदमा डोल ग्यारस 29 अगस्त - शनिवार वामन अवतार 10- भुवनेश्वरी जयंती, प्रदोष व्रत 30 अगस्त - रविवार 1 सितम्बर - अनन्त चतुर्दशी, गणपति विसर्जन सोमवार (मेरी शंका विसर्जन पर है क्युंकि मैं प्रथम पूज्य को कभी विसर्जित नही कर सकता; उन्हे स्नान कराकर पूजन में पुन: स्थापित करता हुँ। ये विवाद का विषय नही अपितु आस्था का है) 〰〰🌼〰〰
रविन्द्र पारीक
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