कुंडली फलादेश और कारक ज्ञान

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Astro Rakesh Periwal 26th Jul 2020

कुंडली फलादेश और कारक ज्ञान ********************************************* कुंडली में स्थित कारकों के बारे में यदि स्पष्ट जानकारी हो तो कोई भी शख्स खुद से जुड़ी जिज्ञासा का समाधान कर सकता है। हर सवाल का जवाब प्राप्त कर सकता है। आइए देखें भावों के अनुसार कारक कौन से होते हैं।

प्रथम भाव इस भाव का कारक सूर्य है। यह सबसे प्रमुख भाव है। इसी भाव की राशि, ग्रह और इसके अधिपति ग्रह की स्थिति से जातक की स्थिति की प्राथमिक जानकारी मिलती है। जातक की जन्मकुंडली अथवा प्रश्न कुंडली के किसी सवाल के जवाब में उसके स्वास्थ्य, जीवंतता, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मा आदि को देखा जाता है। हर जवाब के लिए पहले लग्न, लग्न राशि, ग्रह और लग्न प्रभाव देखे जाते हैं।

दूसरा भाव इस भाव का कारक गुरू है। ज्योतिष में इसे धन भाव कहा जाता है। इससे बैंक एकाउंट, पारिवारिक पृष्ठभूमि देखी जाती है। यह भाव संसाधन, नैतिक मूल्य और गुणों के बारे में बताता है। किसी भी जातक का परिवार कितना बड़ा या छोटा है अथवा स्थावर संपत्ति की क्या स्थिति है, इसी भाव से देखेंगे। उदारता, मित्रों की मदद, कंजूसी, कवित्व शक्ति इसी भाव में देखी जाती है।

तीसरा भाव इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुंडली को ताकत देने वाला भाव यही है। भाग्य के इतर अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। बौद्धिक विकास, साहसी विचार, दमदार आवाज, प्रभावी भाषण एवं संप्रेषण के अन्य तरीके इस भाव से देखे जाएंगे। यात्राएं और छोटे भाई के लिए भी इसे देखते हैं।
चौथा भाव इसका कारक चंद्रमा है। यह सुख का घर है। किसी के घर में कितनी शांति है इस भाव से पता चलेगा। इसके अलावा माता के स्वास्थ्य और घर कब बनेगा जैसे सवालों में यह भाव प्रबल संकेत देता है। शांति देने वाला घर, भावनात्मक स्थिति, पारिवारिक प्रेम जैसे बिंदुओं के लिए हमें चौथा भाव देखना होगा। यह भाव वाहन सुख के बारे में भी जानकारी देता है।

पांचवां भाव इसका कारक गुरू है। इसे उत्पादन भाव भी कह सकते हैं। इंसान क्या पैदा करता है, वह इसी भाव से आएगा। इसमें शिष्य और पुत्र से लेकर पेटेंट वाली खोजें और कृतियां तक शामिल हो सकती हैं। इसके अलावा आनंदपूर्ण सृजन, बच्चे, सफलता, निवेश, जीवन का आनंद, सत्कर्म जैसे बिंदुओं को जानने के लिए इस भाव को देखा जाता है।

छठा भाव इस भाव का कारक मंगल है। इसे रोग का घर भी कहते हैं। प्रेम के सातवें घर से बारहवां यानि खर्च का घर है। शत्रु और शत्रुता भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कठोर परिश्रम, सश्रम आजीविका, स्वास्थ्य, घाव, रक्तस्त्राव, दाह, सर्जरी, डिप्रेशन, उम्र चढ़ना, कसरत, नियमित कार्यक्रम के संबंध में यह भाव संकेत देता है। अपनों से विरोध, इज्जत पर आंच भी इसी भाव में देखा जाता है।
सातवां भाव इसका कारक शुक्र है। लग्न को देखने वाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है। राह में साथ जा रहे दो लोगों के लिए, प्रेक्टिकल के लिए टेबल शेयर कर रहे दो विद्यार्थियों के लिए, एक ही समस्या में घिरे दो साथ-साथ बने हुए लोगों के लिए यह भाव देखा जाएगा।जीवनसाथी, व्यावसायिक भागीदार, करीबी दोस्त, सुंदरता जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं।
आठवां भाव इसका कारक शनि है। स्वाभाविक रूप से गुप्त क्रियाओं, अनसुलझे मामलों, आयु, धीमी गति के काम इससे देखे जाएंगे। इसके अलावा दूसरे के संसाधनों का सृजन में इस्तेमाल, जिंदगी की जमीनी सच्चाइयां, तंत्र-मंत्र के लिए यही भाव है। ससुराल का धन भी इसी में देखा जाएगा। आलसीपन, पत्नी से होने वाला कष्ट, अंगहानि भी देखा जाता है।
नवां भाव इसका कारक भी गुरू है। इसे भाग्य भाव भी कहते हैं। पिछले जन्म में किए गए सत्कर्म प्रारब्ध के साथ जुड़कर इस जन्म में आते हैं। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा से अधिक कब और कितना मिल सकता है। धर्म, अध्यात्म, समर्पण, आशीर्वाद, बौद्धिक विकास, सच्चाई से प्रेम, मार्गदर्शक जैसे गुणों को भी इसमें देखा जाता है।
दसवां भाव इसके कारक ग्रह अधिक हैं। गुरू, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्व है। हम जो सोचते हैं वही बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हर तरह का कर्म दसवें भाव से प्रेरित होगा। व्यावसायिक सफलताएं, साख, प्रसिद्धि, नेतृत्व, लेखन, भाषण, सफल संगठन, प्रशासन, स्किल बांटना जैसे काम यह भाव बताता है।
ग्यारहवां भाव इसका कारक भी गुरू है। यह ज्यादातर उपलब्धि से जुड़ा भाव है। आय, प्रसिद्ध, मान सम्मान और शुभकामनाएं तक यह भाव एकत्रित करता है। हम कुछ करेंगे तो उस कर्म का कितना फल मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह भाव अधिक स्पष्ट करता है। यह कर्म का संग्रह भाव है। उपलब्धि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। धैर्य, विकास और सफलता भी इसी भाव से देखते हैं।
बारहवां भाव इसका कारक शनि है। हर तरह का खर्च, शारीरिक, मानसिक, धन और विद्या जो भी खर्च हो सकते हैं इसी से आएंगे। इस कारण बारहवें भाव में बैठा गुरू बेहतर होता है ग्यारहवें भाव की तुलना में क्योंकि सरस्वती की उल्टी चाल होती है, जितना संग्रह करेंगे कम होगी और जितना खर्चेेंगे उतनी बढ़ेगी। विदेश यात्रा लंबी यात्रा भी इसी भाव में देखेंगे। www.futurestudyonline.com


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Rakesh Periwal

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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।