जन्मकुण्डली में राजयोग

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Astro Rakesh Periwal 12th Jan 2019

जन्मपत्रिका में विभिन्न राजयोग विचार राजयोग किसी भी कुंडली में लगन से केन्द्र विभाव ष्णु स्थान कहलाते है एवं लग्र से त्रिकोण स्थान लक्ष्मी स्थान कहलाते है । जब भी इन विष्णु एवं लक्ष्मी स्थानों का संबंध अर्थात परस्पर इन भावों के स्वामी आपस में संबंध बनाते है तो राजयोग का निर्माण होता है। विष्णु स्थान १,४,७ और १० भाव लक्ष्मी स्थान १,५,९ भाव अत: बनने वाले राजयोग १+५, १+९, ४+५, ४+९, ७+५, ७+९, १०+५ और १०+९ भाव उपरोक्त भावों में युति, परस्पर दृष्टि और परिवर्तन सम्बन्ध बनने पर राजयोग बनता है। 

विपरीत राज योग – ६,८,१२ भावों में ही इन भावों के स्वामी स्थित हो, किन्तु इनके साथ कोई ग्रह नहीं हों या किसी ग्रह की दृष्टि नहीं हो, तो यह विपरीत राजयोग उत्तम फल कारक होता है। षष्ठेश ८,१२ भाव में अष्टमेश ६,१२ भाव में व्ययेश ६,८ भाव में स्थित होने पर किसी ग्रह से युक्त या दृश्य नहीं हो तब यह योग बनता है। ६,८,१२ भाव के स्वामी एकत्र स्थित हो या अलग-अलग होकर ६,८,१२ भावों में स्थित होने पर अन्य ग्रह से युक्त दृष्ट नहीं हो तब भी विपरीत राजयोग बनता है। जो शुभफल प्रद होता है। 

१. हर्ष विपरीत राजयोग जब षष्टेश अष्टम या द्वादश स्थान जाय।

 २. सरल विपरीत राजयोग जब अष्टमेश षष्टम या द्वादश भाव में चला जाए। 

३. विमल विपरीत राजयोग जब द्वादशेश षष्टम या अष्टम स्थान में चला जाएं।

 नीच भंग राजयोग- जो ग्रह नीच का हो उसकी उच्च राशि का स्वामी लगन से या चन्द्र से केन्द्र में स्थित होने पर नीच भंग योग बनता है। अथवा जो ग्रह यदि दिन में जन्म हो तो विषम राशि का सूर्य पिता, सम राशि का चन्द्रमा मामी, सम राशि का शुक्र माता, विषम राशि का शनि चाचा का स्वामी होता है। यदि रात्रि का जन्म हो विषयम राशि का सूर्य चाचा का सम राशि चन्द्र माता का सम राशि शुक्र मामी का विषम राशि का शनि पिता का स्वामी होता है। प्रत्येक भाव शुभ ग्रह युत दृष्टि हो भावेश उच्च राशि में मित्र राशि में मित्र राशि में भावकारक ग्रह भी बलवान् हो तथा भाव से भाव तक गणना करने पर अर्थात् चतुर्थ भाव के विचार के समय चतुर्थ से चतुर्थ भव का स्वामी भी बलवान् हो तो उस भाव का शुभ फल होता है। इसी प्रकार भाव पापयुत द्रष्ट हो षष्टेश अष्टमेश द्वादशेश से भाव और भावाधिपति युतद्रष्ट हो अस्त नीच पापा-क्रान्त शत्रुगृही हो तथा भावकारक ग्रह उपर्युक्त दोषयुक्त हो उस भाव की हानि होती है फलित का विचार करते समय इस सूत्र को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये। भावाधिपति केन्द्र या त्रिकोण में रहने पर भाव की पुष्टि करता है। 

१. जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि का स्वामी नीच राशि को देखत हो अथवा वह नीच राशि लग्र या चन्द्र से केन्द्र में हो तो राजाधिराज योग बनता है। 

२. यदि नीच राशिस्थ ग्रह की उच्च राशि का स्वामी केन्द्र में तब भी राजा बनताहै। ३. नीच राशि का स्वामी लग्र या चन्द्र से केन्द्र में हो तब भी नीच भंग योग होता है। गुरु मकर राशि का चन्द्र लग्र से केन्द्र में हो तो नीचभंग राजयोग बन जाता है। इसका कारण यह है कि गुरु की उच्च राशि का स्वामी केन्द्रस्थ है। यदि नीच राशि का स्वामी नीच का होकर केन्द्र में स्थित हो तो नीचभंग राजयोग नहीं बनता। 

उच्चपदासीन राजयोग- १. यदि लग्रेश केन्द्र में हो और अपने मित्रग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्र में शुभग्रह हों तो जातक न्यायाधीश अथवा विधिमंत्री आदि पद प्राप्त करता है। २. यदि पूर्ण चन्द्र जलचर राशि के नवमांश में चतुर्थ भावस्थ हो, स्वराशिस्थ शुभग्रह लग्र में हो तथा केन्द्र में पापग्रह न हो तो ऐसा जातक राजदूत अथवा गुप्तचर विभाग में किसी उच्च पद को प्राप्त करता है। ३. किसी ग्रह की उच्च राशि लग्र में हो, वह ग्रह यिद अपने नवांश अथवा मित्र अथवा उच्च के नवांश में केन्द्रगत शुभाग्रह से दृष्ट हो तो ऐसा जातक शासनधिकारी का पद प्राप्त करता है। उच्चपद कारक योग जब दो या दो से अधिक ग्रह उच्चस्थ या स्वराशिस्थ होकर परस्पर केन्द्रों में और लग्र से भी केन्द्र में हो तो कारक योग होता है जो धनी व उच्च पद का अधिकारी बनाता है। जब जन्म लग्रप ही नवमांश लग्र हो। सूर्य से द्वितीय भाव में शुभग्रह हो। कुण्डली में चारों केन्द्रों में ग्रह हो, कारक योग हो इनमें से कोई भी योग होने पर व्यक्ति धनी व उच्च पदाधिकारीयोग बन जाता है। 

धनी यशस्वी राज्याधिकारी योग – १. लग्र से केन्द्रों में शुभग्रह षष्ठ अष्टम भाव रिक्त हों या इनमें शुभग्रह स्थित हो। २. लग्र और व्यय के स्वामी परस्पर केन्द्रगत मित्रग्रहों से दृष्ट हों। ३. लग्रेश जिस राशि में स्थित हो उस राशि का स्वामी स्वक्षेत्रीय या उच्चस्थ होकर केन्द्र में स्थित हो। ४. मेष लग्र में मंगल दशमस्थ शनि के साथ स्थित हो, गुरु से भी दृष्ट हो। ५. कर्कलग्र में चन्द्र कर्क में बुध सप्तम में होने पर शुभग्रह केन्द्रस्थ हो और षष्ठ व अष्टम में शुक्र गुरु उदित हों और उनके साथ धनेश सूर्य अष्टम में हों। ६. चन्द्र लग्रेश व लग्रेश दोनों एकत्र केन्द्रस्थ होकर अधिमित्र ग्रह से दृष्ट हो तथा लग्र को बली ग्रह देखता हों। ७. सूर्य से बुध द्वितीय से हो बुध, से चन्द्र एकादश में हो चन्द्र से गुरु नवम भावस्थ हो, तुला लग्र में सूर्य व्यय में बुध लगन में चन्द्र एकादश में और गुरु सप्तम भाव स्थित हों। ८. गुरु से केन्द्र में शुक्र हो और दशमेश बलवान हों। ९. १,२,६,१२ भावों में ग्रह स्थित हों दशमेश बलवान हों। १०. किसी पुरुष का दिन में जन्म हो और लग्र चन्द्र लग्र, सूर्य लग्र तीनों विषम राशि में हों। ११. किसी स्त्री का जन्म रात्रि में हो और तीनों लग्र में चन्द्र लग्र, सूर्य लग्र समराशि हों। १२. किसी स्त्री का जन्म रात्रि में हो और तीनों लग्र सम राशि में हो। १३. उच्चस्थ ग्रह जिस नवमांश में हो उसका स्वामी उच्च राशि का केन्द्रस्थ हो और लग्रेश बली हो। १४. लग्र में ३ शुभग्रह हो। १५. लग्र में ३ पापग्रह से दरिद्री, अपमानित रोगी चिन्तित योग बनता है। १६. नवमेश तथा शुक्र उच्च राशि अथवा स्वराशि में स्थित होकर केन्द्र त्रिकोण में हो। १७. उच्चराशिगत नवमेश, स्वराशि या मूल त्रिकोण में नवमेश लग्र से केन्द्र में हो। १८. जब कोई ग्रह अधिकतर लग्रों का मित्र होता हुआ पंचमस्थ या अन्य धनप्रद भावस्थ राहु केतु जिस राशि में हों उसका स्वामी हो और बलवान् हो तो लाटरी धन लाभ होता है। १९. जन्म लग्र या चन्द्र लग्र ६,७,८ भाव में शुभग्रह हों अथवा दोनों लग्र में से किसी से ३,६,१०,११ भाव में शुभग्रह हों। २०. सूर्य से द्वितीय भाव में चन्द्र को छोडक़र कोई ग्रह हों अथवा सूर्य से व्यय भाव में चन्द्र को छोडक़र कोई ग्रह हो अथवा सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव चन्द्र को छोडक़र अन्य ग्रह हों अथवा चन्द्र से द्वितीय और द्वादश में सूर्य को छोडक़र अन्य ग्रह हों। २१. चन्द्र से द्वितीय में सूर्य छोडक़र सूर्य ग्रह हो या सूर्य से व्यय में सूर्य को छोडक़र अन्य ग्रह हो अथवा चन्द्र से द्वितीय और द्वादश में सूर्य को छोडक़र अन्य ग्रह हो। २२. यदि सप्तमेश दशम भाव में उच्च राशिगत हो। अथवा दशमेश भागयेश का योग हो उपर्युक्त सभी योग धनी यशस्वी, राज्याधिकाीर आदि शुभ योग कारक है। २२. द्वितीय व पंचम भाव में बुध, गुरु, शुक्र स्थित हो अथवा गुरु बुध या शुक्र की राशि में स्थित हो तो श्रेष्ठ संगीतज्ञ योग बनता है। दशमेश पंचम में बुध केन्द्र में हो, सूर्य सिंह राशि में हो तो शारदा योग बनता है अथवा चन्द्र से नवम पंचम गुरु हो और गुरु बुध से लाभ में हो। शुक्र, गुरु तथा बुध केन्द्र में या त्रिकोण में हो अथवा यही तीन शुभग्रह धन भाव में अपने उच्च या मित्र ग्रह की राशि में हो और गुरु बलवान हो तो सरस्वती योग बनाकर व्यकित को कवि, शास्त्रज्ञ, ग्रन्थकर्ता, धनी, स्त्री, पुत्र से युक्त व राज्य सम्मानित करता है।

 पंच महापुरुष योग – मंगल बुध, गुरु, शुक्र शनि क्रमश : पअनी उच्च राशिस्थ व स्वक्षेत्री होकर केन्द्रस्थ हों तो क्रमश: रुचक, भद्र, हंस मालव्य और शश योग बनाते हैं, इन योगों में सम्पन्न व्यक्ति उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति में ग्रह के गुण धर्मों का समावेश रहता है। चन्द्र और गुरु षडाष्टक स्थिति में हों और गुरु लग्र से केन्द्र में न हो तो शकट योग बनता है जो व्यक्ति निर्धन तो होता है, सदा जीवन कष्टमय व्यतीत करता है। 

गज केसरी योग – १. चन्द्र से गुरु केन्द्र में हो तो गज केसरी योग बनता है। इसमें चन्द्र से सप्तम में गुुरु स्थित हो तो उसे उत्तम गज केसरी योग माना है। २. पूर्णचन्द्र शुभ नवमांश में हो स्वगृही या उच्च का हो वह पापग्रहों से युत द्रष्ट नहीं होतो लग्र के अतिरिक्त अन्य केन्द्रों में स्थित होने पर भी गज केसरी योग बनता है। ३. चन्द्र पर बु.बृ.शु. तीनों की दृष्टि होने पर भी गज केसरी योग बनता है। इस योग का फल अत्युत्तम लिखा है। ४. नीच ग्रह का नवमांशेश अर्थात् नीच ग्रह के नवमांश का अधिपति लग्र से केन्द्र त्रिकोण में हो और लग्र १,४,७,१० राशि का हो तो नीच भंग राजयोग बनकर शुभ फल प्रद होता है। धन योग किसी भी कुंडली में द्वितीय भाव एवं एकादश भाव धन भाव कहलाते है एवं लग्र से त्रिकोण स्थान लक्ष्मी स्थान कहलाते है जब भी लक्ष्मी स्थानों का संबंध धन भाव से बनता है तो धन योग का निर्माण होता है। धन भाव २,११ लक्ष्मी स्थान १,५,९ धन योग २+१, २+५, २+९, २+११, १+११, ५+११ और ९+११ भाव राहु-केतु से बनने वाले राज योग जब किसी कुंडली में राहु-केतु विशेष राज योग बनाते है तब वे अपनी महादशा या अन्तरदशा में अपना शुभ फल देने में सक्षम होते है। इन राजयोगों के बनने की तीन अवस्थाएं है। १. जब कभी राहु या केतु त्रिकोण भाव में विद्यमान हो और कुंडली के केन्द्रेश से संबंध बनाये। २. जब कभी राहु या केतु केन्द्रभाव में विद्यमान हो और कुंडली से त्रिकोणेश में संबंध बनाये। ३. जब कभी राहु या केतु केन्द्र या त्रिकोण से अन्य किसी स्थान में विद्यमान हो और कुंडली के केन्द्रेश एवं त्रिकोणेश दोनो के संबंध हो तो राजयोग बनाते है। 

शुभ योग १. लग्र का स्वामी जिस राशि में हो उसका स्वामी उच्चराशि में हो अथवा लग्र का स्वामी जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी चन्द्र से केन्द्र में हो तो आजीवन सुखी योग बनता है। 

२. लग्र कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली में से किसी में भी उपर्युक्त योग का विचार करना चाहिये। लग्र में मेष, सिंह, धनु राशि का मंगल स्थित होकर मित्र ग्रह से दृष्ट हो तो स्व भुजोपर्जित धन से धनी होता है। 

३. तृतीय में सूर्य नवम में चन्द्र पंचम में गुरु हो तो महाधनी योग बनता है। 

४. चन्द्र से अथवा लग्र से ६,७,८वें भावों में बु.वृ.शु. क्रमश: स्थित हों अथवा एकत्र स्थित हों या दो स्थानों में ही स्थित हों तो नृप तुल्य योग अथवा बहुत बड़ा जमींदार होता है। यदि चन्द्र धनुराशि का हो तो षष्ठ में शुक्र सप्तम में बुध अष्टम में गुरु स्थित होने से बहुत उत्तम योग बन जाने से सर्वोत्तम अधियोग बन जाता है। जन्म लग्र कन्या हो और चन्द्र धनुराशि में हो तो चन्द्र से ६,७,८ भाव में क्रमश: शु.बु.गु. के स्थित होने पर यह अधियोग अत्युत्तम बन जाता है। जन्म लग्र से अधियोग का विचार करने धनु लग्र में ६,७,८ वें भाग स्थित ग्रह क्रमश: शुक्र, बुध, व गुरु होने से यह अधियोग अधम अधियोग बनता है। क्योंकि जन्म लग्र से शुक्र षष्ठ में और गुरु अष्टम में हो जाता है। ६,८,१२ भाव के स्वामी परस्पर अन्योन्य राशि में हो अथवा स्वराशि में स्थित हो इन पर शुभ ग्रहों की युति दृष्टि नहीं हो तो विपरीत राजयोग बनता है। यह योग धन, यश, पदवी, राज्याधिकार आदि उपलब्ध करवाता है।


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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