नव ग्रहो का सार खुशहाल हमारा परिवार

Share

Ravinder Pareek 27th Jul 2020

जिस प्रकार हर एक परिवार में माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार होते हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों ने नवग्रहों को हमारे परिवार के सदस्यों की तरह जोड़कर उनका अध्ययन किया है। आइए, जानें हम भी कैसे खुश रह सकते हैं- सूर्य : सूर्य पिता है। सूर्य की कृपा के लिए हमें उनकी आराधना करना चाहिए। सूर्य की कृपा मिलने पर जातक की कीर्ति बढ़ती है, दुःख कम हो जाते हैं। चन्द्रमा : चन्द्रमा माता है, अतः जिस प्रकार माँ की सेवा करने से मन को शांतता मिलती है, उसी प्रकार चन्द्रमा की आराधना करने से जीवन में शीतलता मिलती है। यदि चन्द्रमा की कृपा न हो तो जातक सब सुखों के रहते भी मन में दुःखी रहता है। मंगल : मंगल छोटा भाई है। मंगल पराक्रम का ग्रह है। इसकी कृपा न होने पर जातक के पराक्रम में कमी आती है। सभी प्रकार के हथियार और औजार आदि का प्रतिनिधि है मंगल। बुध : बहन, बुआ, मौसी आदि है बुध। बुध वाणी का भी कारक है। यदि बुध शुभ होंगे तो आपके शब्द, आपकी वाणी खाली नहीं जाएगी। बुध को प्रसन्न रखें और फिर जीवन में उसका सकारात्मक असर देखिए। बृहस्पति : बड़े भाई हैं बृहस्पति। इसके अलावा उन्हें सलाहकार और उच्च शिक्षक का भी स्थान प्राप्त है। यदि जातक पर उनकी कृपा है तो उन्हें अच्छी सलाह मिलती रहेगी। उनकी आराधना करने वाले का चरित्र और कीर्ति उज्ज्वल होती है। गीता,रामायण, उपनिषद या वेदों का पठन करें शुक्र : पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति है शुक्र। उन्हें एक-दूसरे का आदर करना ही चाहिए। शुक्र की कृपा होने पर घर में वैभव की प्राप्ति होती है। घर को भौतिक साधनों से संपन् करने के लिए शुक्र को प्रसन्न रखना चाहिए। समय समय पर एक दूसरे को उपहार देकर खुश रखें शनि : घर का मुखिया है, जो एक सेवक की भांति आपको सुखी रखेगा और यदि उसकी अनदेखी करोगे तो दुःख ही दुःख मिलेगा। जो लोग अपने घर के मुखिया और दफ्तर/ कारखानों में काम करने वाले सेवकों/अधिनस्तो/नोकरो के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें शनि देवता दुःखी करते हैं। शनि न्याय प्रिय है शराब कबाब व उल्टे व्यसन करने वाले को शनि उतना ही दंड देता है जितने व्यसन भयंकर होते हैं राहु : ससुराल के सभी लोग सास-ससुर आदि राहु हैं। ससुराल वालों से संबंध अच्छा रखने वालों पर राहु प्रसन्न रहते हैं। कुंडली में राहु एनर्जी है पॉवर है पॉजिटिव शक्ति है यदि राहू के विपरीत होने पर ससुराल वालों को प्रसन्न रखें। व चंदन इत्र व गुलाब इत्र की खुसबू का उपयोग करें सदैव लाभ होगा केतु : संतानें केतु हैं। व पुत्र सन्तान को भी केतु माना जाता है केतु की प्रसन्नता के लिए अपनी संतानों के प्रति उत्तरदायित्वों का पालन नैतिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर करना चाहिए। केतु शुभ स्थिति में हो तो जातक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। केतु मोक्ष का कारक भी माना जाता है। दूसरी तरफ मोक्ष भी संतान से ही प्राप्त होता है।


Like (4)

Comments

Post

Suman Sharma

very nice article by Astro Ravi ji


बहुत अच्छा लिखा है जैसे भाई-बहन अन्य रिश्तेदार होते हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों ने नवग्रहों को हमारे परिवार के सदस्यों की तरह होते हैं


Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top