House aur Mangal

Share

Dr Rishi Natani 08th Jul 2019

मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए. स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, तभी व्यक्ति घर बना पाता है. मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है. मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है. मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है. इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है. चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है. चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है. चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं. एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं. यदि चतुर्थेश, एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है. कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं. जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं. चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं. चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है. जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए. भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं. चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश, चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए. यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है. मकान अथवा भूमि से संबंधित सभी योगो का आंकलन जन्म कुंडली, नवांश कुंडली व चतुर्थांश कुंडली में भी देखा जाता है. यदि तीनों में ही बली योग हैं तब बिना किसी के रुकावटों के घर बन जाता है. जितने बली योग होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होते जाएंगे, घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है. उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा. बहुत ज्यादा घर बदल सकता है. चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है...


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top