भाव-भावेश-कारक फलादेश में सबसे अधिक महत्त्व “भाव-भावेश-कारक” का होता है। इन तीनों की तुलनात्मक समीक्षा के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिये। भाव कुण्डली के १२ घरों या खानों को “भाव” कहते हैं। यह बारह भाव हमारे जीवन और संसार की कारकों वस्तुओं को विभिन्न स्तरों पर बारह भागों में विभक्त करते हैं। जो ज्योतिषी इन कारक वस्तुओं को जितना अधिक जानता है, उतना अधिक सफल होता है। चित्र में जो संख्या लिखी गई है यह संख्या भावों की हैं, कुण्डली में इन्हें नहीं लिखा जाता। क्योंकि भाव अपने स्थान पर ही रहते हैं, इसलिए इनकी संख्या नहीं लिखी जाती। कुण्डली में जो संख्या लिखी हुई होती हैं, वह संख्या राशियों की होती हैं। चित्र में लिखे शब्द भावों के नाम हैं, भावों को अन्य बहुत-से नामों से भी पुकारते हैं।
१. लग्न, विलग्न, होरा, कल्प, उदय, तनु, जन्म, प्रथम
२. धन, कुटुम्ब, अर्थ, संपत्ति, भुक्ति, वाक्, द्वितीय
३. पराक्रम, सहोदर, वीर्य, सहज, धैर्य, तृतीय
४. सुख, मातृ, बन्धु, पाताल, वृद्धि, चतुर्थ
५. सुत, देव, बुद्धि, विद्या, संतान, पंचम
६. रिपु, रोग, भय, क्षत, ऋण, षष्ठ
७. जाया, जामित्र, काम, सप्तम
८. रन्ध्र, मृत्यु, आयु, अष्टम
९. धर्म, भाग्य, शुभ, नवम
१०. कर्म, मान, पद, दशम
११. आय, लाभ, एकादश
१२. व्यय, द्वादश भावेश भाव विशेष में स्थित राशि का स्वामी ग्रह ही उस भाव का स्वामी होता है, जिसे भावेश कहते हैं। आमतौर से… १. प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश; २. द्वितीय भाव के स्वामी को धनेश/द्वितीयेश; ३. तृतीय भाव के स्वामी को सहजेश/तृतीयेश; ४. चतुर्थ भाव के स्वामी को सुखेश/चतुर्थेश; ५. पंचम भाव के स्वामी को सुतेश/पंचमेश; ६. षष्ठ भाव के स्वामी को रोगेश/षष्ठेश; ७. सप्तम भाव के स्वामी को जायेश/सप्तमेश; ८. अष्टम भाव के स्वामी को रन्ध्रेश/अष्टमेश; ९. नवम भाव के स्वामी को भाग्येश/नवमेश; १०. दशम भाव के स्वामी को कर्मेश/दशमेश; ११. एकादश भाव के स्वामी को आयेश/एकादशेश; १२. द्वादश भाव के स्वामी को व्ययेश/द्वादशेश; कहते हैं। भावेश, लग्न या अपने भाव से किस स्थान पर है? इसका फलादेश में बहुत महत्त्व होता है। फिर यह देखा जाता है कि भावेश किस राशि में है? किस ग्रह से युक्त या दृष्ट है? उदय/अस्त; वक्री/मार्गी; संधि; चर; अतिचर इत्यादि विभिन्न स्थितियों पर आधारित भावेश का बलाबल और अपने भाव को भावेश कतना सहयोग दे रहा है, इस बात का विचार होता है। कारक (कारक ग्रह) जिस प्रकार भावों के स्वामी ग्रह हैं, भावों के कारक ग्रह भी होते हैं। फलादेश में कारक ग्रहों का बहुत महत्त्व है। फलादेश के लिए “भाव भावेश कारक” इन तीनों का ज्ञान आवश्यक होता है। फलादेश करते समय- भाव की स्थिति तथा संबंध; भावेश की स्थिति तथा संबंध तथा कारक की स्थिति तथा संबंध का विचार किया जाता है। भावों के कारक ग्रह – (भाव के कारक ग्रहों पर ग्रंथो में कुछ मतभेद है।)
१- सूर्य २- गुरु ३- मंगल ४- चन्द्र-बुध ५- गुरु ६- शनि-मंगल ७- शुक्र/गुरु (पुरुष जातक के लिए शुक्र तथा स्त्री के लिए गुरु) ८- शनि ९- गुरु-सूर्य १०- शनि-बुध-सूर्य ११- गुरु १२- शनि।