शिवपूजन  पद्धति Shiva worshiping system

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Ravinder Pareek 01st Oct 2020

शिवपूजन  पद्धति

Shiva worshiping system
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शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बाते 
(१) स्नान कर के ही पूजा में बेठे
(२) साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा )
(३) आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम )
(४) पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे
(५) बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये )
(६) संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये )
(७) पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग मत करे
(८) बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर शकते हे
(९) शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे )

पूजन सामग्री :
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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम , अबिल गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल, पान-सोपारी, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक हे

पूजन विधि :
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जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए
शिखा मंत्र : ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित भक्षणे / तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य पराजिते //

आचमन मंत्र :
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ॐ केशवाय नमः / ॐ नारायणाय नमः / ॐ माधवी नमः / ॐ शिवाय नमः
तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बाये हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए
ॐ नमो नारायनायण बोल कर प्राणायाम करना चाहिए
'ह्रीं अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व / य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि // ( बोल कर शारीर पर जल का छंताकाव करे - शुद्धि करन के लिए )
न्यास👉  निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे

ह्रीं नं पादाभ्याम नमः / ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम नमः / ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम नमः / ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः / ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः / ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः / ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः / ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः / ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः / ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः / ( ललाट पर )
ह्रीं यां मुध्र्ने नमः / ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः / ( पुरे शरीर पर )
तत पश्यात भगवन शंकर की पूजा करे

(पूजन विधि निन्म प्रकार से हे )

तिलक मन्त्र : ह्रीं स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य एवच / स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा //
नमस्कार मंत्रो : ह्रीं श्री गणेशाय नमः / ह्रीं इष्ट देवताभ्यो नमः /ह्रीं कुल देवताभ्यो नमः / ह्रीं ग्राम देवताभ्यो नमः /
ह्रीं स्थान देवताभ्यो नमः / ह्रीं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः /
ह्रीं गुरुवे नमः / ह्रीं माता पिता भ्याम नमः
शांति शांति शांति

गणपति स्मरण :
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ह्रीं सुमुखश्वेक्दंतश्व कपिलो गज कर्णक / लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक : //
धुम्र्केतुर्गानाध्याक्शो भालचन्द्रो गजाननः / द्वाद्शैतानी नामानी यः पठेच्छुनुयादापी //
विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमेस्त्था / संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते //
शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम / प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशाताये //
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु / निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु सर्वदा //
संकल्प :अधे त्यादी अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथो अमुक वासरे नित्य नियमपूर्वक पहस्थितानाम पूजनं करिष्ये
( बाये हाथ में चावल रख कर दाया हाथ ऊपर ढके )
द्विग्रक्षण - मंत्र : ह्रीं यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वात:/ स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गछतु //

यह मंत्र बोल कर चावाल को अपनी चारो और डाले

वरुण पूजन : ह्रीं अपाम्पताये वरुणाय नमः / सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह: समपुज्यामी //
यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले

पवित्रीकरण मंत्र : 'ह्रीं अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व / य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि //
( बोल कर ह्रीं नारायणाय नमः ३ बार बोले )

दीप पूजन 
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ह्रीं दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद: / साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती जमोस्तुते //
( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे )

शंख पूजन 
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 ह्रीं लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत: करे / निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य नमोस्तुते //
( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

घंट पूजन  
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देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च विनाशने / घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा प्रपुज्यत //( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

ध्यान मंत्र 
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 ह्रीं ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये / धर्मार्थ काम मोक्षानाम साधनं ते नमो नमः //
( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे )

आहवान मंत्र 
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 ह्रीं आगच्छ देवदेवेश तेजोराशे जगत्पतये / पूजां माया कृतां देव गृहाण सुरसतम //
( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे )

आसन मंत्र 
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ह्रीं सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम / कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम //
( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे )

खाध्य प्रक्षालन 
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ह्रीं उष्णोदकम निर्मलं च सर्व सौगंध संयुत / पद्प्रक्षलानार्थय दत्तं ते प्रतिगुह्यतम //
( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे )

अर्ध्य मंत्र 
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ह्रीं जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा / गंधाक्षत युतं दिव्ये अर्ध्य दास्ये प्रसिदामे //
( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए )

पंचामृत स्नान
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ह्रीं पयो दधि धृतम चैव शर्करा मधुसंयुतम / पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर //
( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे )

स्नान मंत्र
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 ह्रीं गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्नी सहितास्त्था / स्नानार्थ ते प्रसिद परमेश्वर //
(बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये )

संकल्प मंत्र
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 अनेन स्पन्चामृत पुर्वरदोनोने आराध्य देवता: प्रियत्नाम / ( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे , बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये )

अभिषेक मंत्र 
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ह्रीं सहस्त्राक्षी शतधारम रुषिभी: पावनं कृत / तेन त्वा मभिशिचामी पवामान्य : पुनन्तु में //
( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे )
बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर बिराजमान करवाए

वस्त्र मंत्र
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 ह्रीं सोवर्ण तन्तुभिर्युकतम रजतं वस्त्र्मुत्तमम / परित्य ददामि ते देवे प्रसिद गुह्यतम //
( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे )

जनेऊ मन्त्र 
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ह्रीं नवभिस्तन्तुभिर्युकतम त्रिगुणं देवतामयम / उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यताम परमेश्वर //

( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे )

चन्दन मंत्र 
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ह्रीं मलयाचम संभूतं देवदारु समन्वितम / विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति गृह्यताम //
( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे )

अक्षत मंत्र
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अक्श्तास्च सुरश्रेष्ठ कंकुमुकता सुशोभित / माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर //
(बोल चावल चढ़ाये )

पुष्प मंत्र
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ह्रीं नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च / मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में //
( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे )

तुलसी मंत्र 
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ह्रीं तुलसी हेमवर्णा च रत्नावर्नाम च मजहीम / प्रीटी सम्पद्नार्थय अर्पयामी हरिप्रियाम //
( बोल कर तुलसी पात्र अर्पण करे )

बिल्वपत्र मन्त्र 
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ह्रीं त्रिदलं त्रिगुणा कारम त्रिनेत्र च त्र्ययुधाम / त्रिजन्म पाप संहारमेकं बिल्वं शिवार्पणं //
( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे )

दूर्वा मन्त्र 
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ह्रीं दुर्वकुरण सुहरीतन अमृतान मंगलप्रदान / आतितामस्तव पूजार्थं प्रसिद परमेश्वर शंकर : //
( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे )

सौभाग्य द्रव्य
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 ह्रीं हरिद्राम सिंदूर चैव कुमकुमें समन्वितम / सौभागयारोग्य प्रीत्यर्थं गृहाण परमेश्वर शंकर : //
( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे )

धुप मन्त्र 
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ह्रीं वनस्पति रसोत्पन्न सुगंधें समन्वित : / देव प्रितिकारो नित्यं धूपों यं प्रति गृह्यताम //
( बोल कर सुगन्धित धुप करे )

दीप मन्त्र 
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ह्रीं त्वं ज्योति : सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम : / आत्म ज्योति: परम धाम दीपो यं प्रति गृह्यताम //
( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे )

नैवेध्य मन्त्र 
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ह्रीं नैवेध्यम गृह्यताम देव भक्तिर्मेह्यचलां कुरु / इप्सितम च वरं देहि पर च पराम गतिम् //
( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये )

भोजन मंत्र 
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ॐ प्राणाय स्वाहा / ॐ अपानाय स्वाहा /
ह्रीं उदानाय स्वाहा / ह्रीं समानाय स्वाहा / ( बोल कर भोजन कराये )
नैवेध्यांते हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं आरामनियम च समर्पयामि /बाद में एक बार जल रखे और फिर से ऊपर मुजब ५ कोल भोजन करवाए और ३ बार जल रक्खे और बाद में देव को चन्दन चढ़ाये

मुखवास मंत्र 
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ह्रीं एलालवंग संयुक्त पुत्रिफल समन्वितम / नागवल्ली दलम दिव्यं देवेश प्रति गुह्याताम // ( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे )

दक्षिणा मंत्र 
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ह्रीं हेमं वा राजतं वापी पुष्पं वा पत्रमेव च / दक्षिणाम देवदेवेश गृहाण परमेश्वर शंकर > //
( बोल कर अपनी शक्ति मुजब दक्षिणा अर्पण करे )

आरती मंत्र
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 ह्रीं सर्व मंगल मंगल्यम देवानं प्रितिदयकम / निराजन महम कुर्वे प्रसिद परमेश्वर / ( बोल कर एक बार आरती करे )बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे बाद में आरती पर पुष्प चढ़ाये और आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले

पुष्पांजलि मंत्र 
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ह्रीं पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम / तेन त्वं देवदेवेश प्रसिद परमेश्वर //
( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे )

प्रदक्षिणा मंत्र
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 ह्रीं यानी पापानि में देव जन्मान्तर कृतानि च / तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिने पदे पदे //
( बोल कर प्रदिक्षिना करे )
बाद में शिवजी की आरती कर के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।

विशेष👉 यहां प्रत्येक मंत्र के आगे माता शक्ति का बीज मंत्र ह्रीं पूजा में शक्ति को भी सम्मिलित करने के लिए प्रयोग किया गया है।
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Comments

Post

Suman Sharma

very good knowledge astro ravinder ji


very nice article by Astro Ravi ji


यहां प्रत्येक मंत्र के आगे माता शक्ति का बीज मंत्र ह्रीं पूजा में शक्ति को भी सम्मिलित करने के लिए प्रयोग किया गया है।


madan mohan

very nice article


important artical


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।